टीकाकरण यानी वैक्सीनेशन जो कि हमारे नवजात शिशु के लिए बहुत आवश्यक होता है। टीकाकरण ना होने से हमारे देश में हर साल बहुत बच्चे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार होते हैं। इसलिए बच्चों को बहुत सी खतरनाक बीमारी से बचाने का सबसे सरल उपाय हैं उनका टीकाकरण करवाना।
अच्छे स्वास्थ्य का तो सभी को अधिकार होता है और यह सभी टीके बच्चों को सही समय में ही लगवा देने चाहिए। अगर आप नए-नए माता-पिता बनने वाले हैं या फिर बने हैं तो आप भी अपने शिशुओं को टीकाकरण करवाएं। आपका यह भी जानना आवश्यक है कि आप अपने शिशु को टीकाकरण क्यों करवाए, कौन-कौन से करवाएं, कब करवाएं और उनका ना करवाने से शिशु पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं।
टीकाकरण क्या है?
सबसे पहले यह बात जाना आवश्यक है कि टीकाकरण क्या होता है। हमारे शरीर में किसी बीमारी के प्रति लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जो दवा दी जाती है उसे टीका या वैक्सीन कहते हैं। वैक्सीन को शिशु के शरीर में किसी भी रूप में भेजा जा सकता है। जैसे या तो शिशु को खिलाने के रूप में, पिलाने के रूप में या फिर टीके के रूप में।
टीकाकरण करवा कर आप भी अपने बच्चों को स्वस्थ सेहत दे सकती हैं। शिशु टीकाकरण चार्ट जानना हर माता-पिता के लिए बहुत जरूरी है।
शिशु टीकाकरण चार्ट 2018-19
वह टीके जो जन्म के समय लगाए जाते हैं:
- बीसीजी का टीका (BCG)
- हेपेटाइटिस बी का टीका पहली खुराक
- पोलियो वैक्सीन पहली खुराक (OPV)
6 सप्ताह या डेढ़ माह के बाद दिए जाने वाले टीके:
- डीपीटी पहली खुराक (DPT 1)
- पोलियो का टीका (IPV 1)
- हेपेटाइटिस बी का टीका दूसरी खुराक
- हिमोफिलस इनफ्लुएंजा टाइप बी (HiB 1) पहली खुराक
- रोटावायरस पहली खुराक
- PCV 1 पहली खुराक
10वें सप्ताह में लगने वाले टीके:
- डीपीटी दूसरी खुराक (DPT 2)
- पोलियो का टीका दूसरी खुराक (IPV 2)
- हेपेटाइटिस बी का टीका तीसरी खुराक
- PCV 2 दूसरी खुराक
- हिमोफिलस इनफ्लुएंजाए टाइप बी (HiB 2) दूसरी खुराक
- रोटावायरस दूसरी खुराक
इसे भी पढ़ें: बच्चों के लिए ग्राइप वाटर पिलाने से संबंधित पूरी जानकारी
14वें सप्ताह में दिए जाने वाले टीके:
- डीपीटी तीसरी खुराक (DPT 3)
- पोलियो का टीका तीसरी खुराक (IPV 3)
- हेपेटाइटिस बी का टीका चौथी खुराक
- हिमोफिलस इनफ्लुएंजाए टाइप बी (HiB 3) तीसरी खुराक
- PCV 3 तीसरी खुराक
- रोटावायरस तीसरी खुराक
6 महीने की उम्र में दिए जाने वाले टीके:
- टाइफाइड का टीका (TCV 1)
- इनफ्लुएंजा (इसकी पहली खुराक के बाद इसे हर साल एक बार अवश्य दे)
9 महीने की उम्र में दिए जाने वाले टीके:
- खसरा का टीका (MMR 1)
12 महीने की उम्र में दिया जाने वाला टीका:
- हेपेटाइटिस ए पहली खुराक
15 महीने की उम्र में दिए जाने वाले टीके:
- खसरा रूबेला का टीका (MMR 2)
- वेरीसैला (Varisella 1)
- PCV बूस्टर 1
16 से 18 महीने की उम्र में दिए जाने वाले टीके:
- हेपेटाइटिस A (2)
- DPT बूस्टर 1
- IPV बूस्टर 1
- HiB बूस्टर 1
4 से 6 वर्ष की आयु में दिए जाने वाले टीके:
- DPT बूस्टर 2
- वेरीसैला (Varisella 2)
- खसरा रूबेला का टीका (MMR 3)
टीका कैसे काम करता है?
हमारे शरीर में संक्रमण से बचाव करने के लिए एक प्रतिरक्षा क्षमता होती है। जब हमारे शरीर में कोई संक्रमण होता है तो हमारा शरीर इन संक्रमण से लड़ने के लिए कुछ रसायनों को पैदा करता है जिन्हें एंटीबॉडीज कहा जाता है। यह टीके उन एंटीबॉडी पैदा करने वालो की रक्षा करते हैं और यह एंटीबॉडी संक्रमण ठीक होने के बाद भी हमारे शरीर में ही रहते हैं। यह हमारे शरीर में जिंदगी भर के लिए हमारी रक्षा करने के लिए रहते हैं।
इसे भी पढ़ें: दर्दरहित टिकाकरण : 4 चीज़े जो माता पिता का जानना अनिवार्य है
टीकाकरण एक ऐसा माध्यम है जो हमारे शरीर में पैदा होने वाले संक्रमण से हमें रक्षा प्रदान करता है। टीकाकरण हमारे शरीर में प्रतिरक्षा क्षमता को विकसित करता है। यह टीके शिशु को कुछ दवा के रूप में मुंह द्वारा पिलाये जाते हैं यानी उन्हें दवाई पिलाई जाती है। साथ ही कुछ उन्हें इंजेक्शन के रूप में भी दिए जाते हैं।
शिशु काल में करवाया हुआ टीकाकरण जिंदगी भर उनकी रक्षा करता है। इसलिए बच्चों में टीकाकरण करवाना बेहद अनिवार्य हो जाता है। सरकार द्वारा इसके लिए कार्यक्रम के जरिए ही चेचक और पोलियो जैसी बीमारियां अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है।
टीकाकरण का महत्व
बच्चों के शुरुआती पहले वर्षों में लगातार टीके लगवाने की जरूरत पड़ती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बच्चों में 50% मौतें कुकर खांसी से, 30% पोलियो से और 20% खसरे से होती है। इसलिए अपने बच्चों को खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए उनका टीकाकरण करवाना बहुत आवश्यक हो जाता है।
टीकाकरण न सिर्फ आपके बच्चों को बीमारियों से बचाता है बल्कि यह दूसरे बच्चों में इन बीमारियों को फैलने से भी रोकता है। यह बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है और उन्हें तरह-तरह के जीवाणु और विषाणु से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।
बच्चों का टीकाकरण करना क्यों ज़रूरी है?
हर माता-पिता के मन में भी यही सवाल आता है कि मेरा बच्चा बहुत छोटा है। इसलिए इसे इतनी छोटी सी उम्र में ही क्यों दर्द करवाएं और अभी टीके अभी क्यों लगवाएं। इसलिए आपको यह जानना जरूरी है कि बच्चे के पैदा होते ही उसके कुछ सालों तक टीकाकरण क्यों जरूरी है।
जब बच्चा जन्म लेता है उसे टीका लगवाना तभी से शुरू हो जाता है और उसको कुछ सालों तक टीके लगाए जाते हैं परंतु यह ठीक है। जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली बहुत कमजोर होती है और उसमें वह प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो रही होती है जब शिशु माँ के गर्भ में पलता है।
जन्म लेने के बाद आप उसे अपना दूध पिलाती हैं तो शिशु को आपके द्वारा एंटीबॉडीज मिलते रहते हैं जिसके कारण पहले कुछ महीनों तक वह संक्रमण से सुरक्षित रहता है परंतु कुछ महीने बाद ही शिशु में एंटीबॉडी धीरे-धीरे खत्म होने शुरू हो जाते हैं। उस समय शिशु को अपने आप को संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबॉडीज उत्पन्न करने की जरूरत पड़ती है और यह टीके शिशु को उसके शरीर में एंटीबॉडीज विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए शिशु के पैदा होते ही हर माता-पिता का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने बच्चों को टीकाकरण करवाएं ताकि वे उन्हें स्वस्थ जीवन दे सके।
टीकाकरण के प्रकार
#1. प्राथमिक टीकाकरण
इस टीकाकरण में एक से लेकर पांच खुराक शामिल हो सकती हैं। यह खुराक शिशु के जन्म से लेकर उसकी जिंदगी के शुरुआती कुछ सालों तक जारी रहती है। यह शिशु के शरीर में किसी विशेष बीमारी के खिलाफ प्रतिरक्षा क्षमता विकसित करती हैं। इन टीको की सभी खुराक लेना बहुत आवश्यक है।
इसे भी पढ़ें: कपडे की नैप्पी या डिस्पोजेबल डायपर्स – किसका चुनाव करें?
#2. बूस्टर टीकाकरण
बूस्टर टीकाकरण प्राथमिक टीकाकरण के प्रभाव को बढ़ाने के लिए दी जाती है क्योंकि समय के साथ-साथ एंटीबॉडीज का स्तर कम होने लगता है जिसके परिणाम स्वरूप शरीर में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। बूस्टर खुराक शिशु के शरीर में एंटीबॉडी का आवश्यक स्तर बनाए रखती हैं।
#3. सार्वजनिक टीकाकरण
किसी विशेष बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए, टीकाकरण का यह विशेष अभियान चलाया जाता है। ऐसे अभियान सरकार द्वारा अपने देश की जनता को स्वस्थ बनाए रखने के उद्देश्य से ही चलाए जाते हैं जैसे कि पोलियो, चेचक आदि।
आवश्यक टीके
#1. बीसीजी का टीका
यह टीका शिशु के पैदा होते ही लगाया जाता है और यह टीका इंजेक्शन के रूप मे लगाए जाते हैं। बीसीजी का टीका बच्चों को टीबी से बचाता है।
#2. डीपीटी का टीका
यह टीका बच्चों को डिप्थीरिया, पोलियो और काली खांसी जैसी गंभीर और जानलेवा बीमारियों से बचाता है। डिप्थीरिया एक ऐसी बीमारी है जो शुरुआत तो गले की खराश से होती है परंतु आगे चलकर यह जीवन में बहुत सारी समस्याएं पैदा कर सकती हैं। यह फेफड़ों में संक्रमण से संबंधित बीमारी है। टेटनस की वजह से घाव जल्दी नहीं भरते है। डीपीटी का टीका इन सब बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।
#3. खसरे का टीका
खसरे का टीका शिशु को नोवे महीने में लगाया जाता है। इस बीमारी में बच्चों को छोटी-छोटी दाने उनके शरीर पर निकल जाते हैं। यह टीका शिशु को एक प्रकार के संक्रमण वायरल से बचाता है।
#4. हेपेटाइटिस बी का टीका
हेपेटाइटिस एक बेहद खतरनाक और गंभीर बीमारी है। शिशु को लगाया हुआ हेपेटाइटिस बी का टीका उनकी जौंडिक्स और हेपेटाइटिस से रक्षा करता है। हेपेटाइटिस एक प्रकार का संक्रमण वायरल है जो लीवर को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाता है। इसका टीका शिशु को अलग-अलग समय पर 3 शॉट्स की सीरीज में दिया जाता है।
#5. चिकन पॉक्स का टीका
चिकन पॉक्स को चेचक या छोटी माता भी कहते हैं। यह टीका शिशु को चिकन पॉक्स के वायरल संक्रमण से बचाता है। यह शिशु को दो डोज में दिया जाता है। टीके का पहला डोज शिशु के 12 से 15 महीने के दौरान दिया जाता है और दूसरा डोज शिशु को 4 से 5 साल के दौरान दिया जाता है।
#6. एमएमआर का टीका
यह टीका शिशु को खसरा, टॉन्सिल्स जैसी बिमारियों से बचाने के लिए दिया जाता है।
#7. इन्फ्लूएंजा का टीका
यह टीका शिशु को तब दिया जाता है जब वह 6 महीने का हो जाता है। यह टीका सांस की बीमारी से संबंधित है जो श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है जिससे बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होती है।
#8. रोटावायरस का टीका
रोटा वायरस की वजह से बच्चों में आंत्रशोथ व दस्त हो सकते हैं। यह टीका बच्चों को आंत्रशोथ व दस्त से बचाता हैं।
इसे भी पढ़ें: बच्चे का वज़न अगर 8 महीने बाद भी ना बढ़ रहा तो क्या करे?
#9. HiB का टीका
यह टीका शिशु को मस्तिष्क की समस्या से बचाता है। इस टीके की डोज बच्चों को 4 सीरीज में दी जाती है। पहली दो डोज पहले 2 महीने में व दूसरी दो डोज 12 महीने में दी जाती है।
ऊपर बताई गई है सभी बीमारियां बहुत गंभीर और खतरनाक बीमारियां हैं। अगर बच्चों को यह सारे महत्वपूर्ण टीके समय पर लगाए गए तो बच्चों को आप जानलेवा बीमारियों से बचा सकते हैं व साथ ही उनको जिंदगी भर इन बीमारियों से दूर रखा जा सकता है।
कहा जाता है कि बच्चों को जन्म तो माता-पिता देते हैं परंतु उन्हें जिंदगीभर की सुरक्षा टीकाकरण देता है। इसलिए आप बच्चों का टीकाकरण करवाने के लिए अपने डॉक्टर से अवश्य संपर्क करें और उनसे टीकाकरण का शेड्यूल चेक करें।
टीकाकरण से सम्बंधित कुछ मिथ्याएँ
मिथक 1:
टीके गंभीर बीमारियों को कवर नहीं करते हैं।
तथ्य:
सभी टीके काफी गंभीर बीमारियों को कवर करते हैं। बच्चों को उनकी नवजात प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण किसी भी संक्रमण के गंभीर परिणाम होने का खतरा होता है। इसलिए टीकाकरण विशेषकर महत्वपूर्ण हैं।
मिथक 2:
मेरे बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली वैक्सीन से ज्यादा बेहतर है।
तथ्य:
प्राकृतिक प्रतिरक्षा आमतौर पर पर्यावरण के संपर्क में आने के बाद ही खत्म हो जाती है। इसलिये टीकाकरण इसमें मदद करता है।
मिथक 3:
टीकाकरण की वजह से बच्चे ऑटिज्म के शिकार होते हैं।
तथ्य:
यह लंबे समय तक एक मिथक रहा था लेकिन ऑटिज्म वैक्सीन से जुड़ा कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
मिथक 4:
टीकाकरण के बाद मेरा बच्चा बीमार पड़ जाता है।
तथ्य:
बुखार, सूजन या हल्का चिड़चिड़ापन तीकरण के बाद के कुछ दुष्प्रभाव है लेकिन यह संक्रमण नहीं है। यह आमतौर पर टीके लगवाने के बाद एक या दो दिन के भीतर होते है।
मिथक 5:
यदि मेरा बच्चा बीमार है तो उनकी वैक्सीन नहीं करनी चाहिए।
तथ्य:
वैक्सीन शेड्यूल को बनाए रखने के लिए सामान्य बीमारी कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। हल्का बुखार होने पर बच्चों को टीकाकरण कराया जा सकता है। यदि आपके बच्चे को तेज बुखार है तो टीके कुछ दिनों तक देरी से लग सकते हैं।
मिथक 6:
एक बार में एक से अधिक वैक्सीन देना सुरक्षित नहीं है।
तथ्य:
ज्यादातर उदाहरणों में, सभी टीके की खुराक एक ही दिन में दी जाती है। आजकल कई टीके संयोजन के रूप में भी आते हैं जिसमे एक टीके की शीशी में कई जीवों के खिलाफ टीकाकरण होता है।
Leave a Reply