जन्म के बाद हर माता-पिता अपने बच्चे को हंसते खेलते, बोलते और चलते हुए देखना चाहते हैं। पहला वर्ष बच्चों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण भी होता है क्योंकि इसी वर्ष के दौरान वे चलना बोलना इत्यादि सीखते हैं और उनकी दांत निकलने की अहम प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है।
चलना सीखने की प्रक्रिया में शिशु सबसे पहले घुटनों के बल ही चलना सीखता है। शिशु अपने आप ही घुटनों के बल चलना सीख जाते हैं। घुटनों के बल पर चलने से शिशु अपने हाथ और पैरों की मदद से खुद के शरीर का संतुलन बनाना और आगे बढ़ना सीखते हैं जिसके कारण उसकी हाथ और पैरों की मांसपेशियां मजबूत होने लगती हैं।
जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो माता-पिता यह नजारा देखकर बहुत खुश होते हैं। इसके साथ ही यह माता-पिता और घर के बाकी सदस्यों के लिए बड़े भाग दौड़ वाला समय होता है। पूरा घर शिशु की किलकारियां से भर उठता है परंतु कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो घुटनों के बल नहीं चलते बल्कि सीधा पैरों के बदले चला शुरू कर देते हैं और वे घुटनों के बल चलने से मिलने वाले फायदों से वंचित रह जाते हैं।
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ऐसी में सोचनीय विचार यह है कि क्या बच्चों का घुटनों के बल चलना अति-आवश्यक होता है? इसलिए आज हम जानते है कि शिशु के घुटनों के बल चलने से उन्हें क्या-क्या लाभ मिलते हैं।
घुटनों के बल चलना एक प्राकृतिक नियम है और इससे शिशु को बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं जो उनके शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
शिशु घुटनों के बल चलना कब शुरू करते हैं?
सामान्य शिशु 7 से 10 महीने का होने पर घुटनो पर चलना शुरू कर देते हैं जबकि कुछ शिशु 9 से 10 महीने में भी घुटनों पर चलना शुरू करते हैं। शिशु इस समय कई अन्य तरीके भी चुनते हैं जैसे पेट के बल पर हाथ पैर की मदद से आगे या पीछे होना, पेट के सहारे रेंगना आदि। आपको शिशु के इन तरीकों पर चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हर शिशु का अपना अलग अंदाज होता है चलने का।
शिशु के घुटनों के बल चलने के प्रकार
- पेट के बल रेंगना।
- रोल करना।
- सामान्य तरह से घुटनों के बल चलना।
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घुटनों के बल चलने से शिशु को मिलने वाले लाभ
जब आपके बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो वे स्वयं के शरीर पर नियंत्रण करने की क्षमता में बढ़ोतरी करते हैं। शिशु के विकास के लिए उनका घुटनों के बल चलना अति-आवश्यक है। इसलिए आज आप और हम शिशु के घुटनों के बल चलने से मिलने वाले लाभ के बारे में चर्चा करते हैं।
#1. बच्चों का शारीरिक विकास होना
जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो वह अपने पैरों के साथ-साथ हाथों का भी इस्तेमाल करते हैं जिससे उसके हाथ और पैर दोनों की हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती हैं और उनका शरीर लचीला बनता है। जब वे घुटनों के बल चलते हैं तो इस दौरान वे बहुत सारी प्रक्रिया करते हैं जैसे पैर सिर को मोड़ना, घुमाना, चलना आदि।
शिशु जब घुटनों के बल चलना शुरू करते हैं तो उन्हें कई तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जैसे प्रोटीन और कैल्शियम युक्त आहार। यदि आप भी यह चाहती हैं कि आपके बच्चे घुटनों के बल चलने के लाभ उठा सके तो आपको उनके आहार में ऐसे आहारों को सम्मिलित करना चाहिए जिनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम हो ताकि उनकी हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत बने और उनका तेजी से विकास हो।
#2. संतुलन बनाना सीखते हैं
जो बच्चे स्वयं से चीजों को करना सीखते हैं उनका मानसिक विकास तेज गति से होता है। घुटनों के बल चलना एक प्राकृतिक नियम है और इसका चलने का समय भी प्रकृति ही निर्धारित करती है। वरना संसार में कुछ बच्चे वैसे भी हैं जो घुटनों के बल चलने की बजाये सीधा चलना शुरू कर देते हैं। शिशु के घुटनों के बल चलने से उसने गति के नियमों को समझने की क्षमता बढ़ती है।
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#3. शिशु के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी
घुटनों के बल चलने से शिशु में आत्मविश्वास आता है और वह स्वयं से निर्णय लेने के लिए सक्षम हो जाता है। घर पर ही जब शिशु घुटनों के बल चलते हुए गिरता व संभलता है तो इससे उसे सही तरह से अपने लक्ष्य पर पहुंचने में मदद मिलती है। ऐसा करने से उसके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है।
इसके साथ ही शिशु अपनी सीमाओं के बारे में भी अच्छी तरह से जान पाता है और वह अपनी जिंदगी के बहुत से दैनिक फैसले स्वयं लेना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए दूरी और गहराई के आधार पर वह यह पहचान लेता है कि उसे किस दिशा में और कितना आगे बढ़ना है। ऐसे निर्णय लेने से उनमें आत्मविश्वास के साथ-साथ सोचने और विचार करने की क्षमता भी बढ़ती है। जो बच्चे ऐसे निर्णय लेने लग जाते हैं तो माता-पिता को भी उन्हें देखकर बहुत खुशी होती है।
#4. सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है
घुटनों के बल चलने के दौरान कई बार बच्चों को चोट भी लग सकती है। इससे बच्चों में इतना आत्मविश्वास और साहस पैदा होता है कि वह जिंदगी में ऐसे छोटे-मोटे निर्णय कर आगे चलकर बड़ा जोखिम उठाने के काबिल हो जाते हैं। यदि यह सब करते हुए वह असफल हो भी गए तो उनके अंदर उन्हें प्रयास करने की क्षमता विकसित होती है। यह समझ और आत्मविश्वास बच्चों के जीवन भर काम आता है।
#5. शिशु के मस्तिष्क का विकास होना
शिशु के जीवन का यह एक महत्वपूर्ण और अहम पड़ाव होता है जब उसके दाया और बाया मस्तिष्क आपस में सामंजस्य स्थापित करना सीखते हैं। इस समय शिशु को एक समय में कई काम करने होते हैं और उसके दिमाग को भी अलग-अलग कई हिस्सों में काम करना होता है।
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जैसे कि मान लो यदि बच्चा घुटनों के बल चल रहा है तो उसे इस स्थिति में अपने हाथ और पैर दोनों इस्तेमाल करने होते हैं तथा उसे अपने आप ही तापमान, दूरी, गहराई न जाने और क्या-क्या देखना पड़ता हैं। उसे सब कुछ स्वयं ही नियंत्रित करना पड़ता है। इतने कामों को एक साथ करने पर दिमाग का बहुत इस्तेमाल होता है जिसके कारण शिशु के दिमाग का विकास इस समय चरम सीमा पर होता है।
#6. देखने की क्षमता का विकास होता है
जब शिशु घुटनों के बल चलते हुए एक जगह से दूसरी जगह पर जाता है तो वह अपनी दूर दृष्टि का उपयोग करता है। इसके बाद वे अपने हाथों को देखकर उनको सही स्थिति में लाता है। इन सब क्रियाओं का शिशु की आंखों की मांसपेशियों पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिससे आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती है। उसके दोनों आंखों के देखने की सामान्य क्षमता में सुधार आता है जो आगे चलकर उसके पढ़ने और लिखने में सहायक होती हैं।
#7. शारीरिक मजबूती आती है
घुटनों के बल चलने से शिशु का अच्छा खासा व्यायाम हो जाता है और उसके घुटनों और हाथों की मजबूती बढ़ने लगती है। घुटनों के बल चलते समय में शिशु का सारा भार उसके हाथों और पैरों को होता है। जब वह घुटनों के बल चलते-चलते किसी चीज के पास पहुंचकर जैसे बेड, सोफा आदि, उनको पकड़ने की कोशिश करता है तो उससे उसकी रीड में सामान्य वक्र विकसित होने लगता है।
उसकी पीठ के निचले हिस्से और पैरों की मांसपेशियां भी मजबूर होने लगती है। यह सब प्रक्रिया होने पर बच्चों के पांव में बहुत मजबूती आ जाती है जो आगे चलकर उनके पांव चलाने में सहायता करते हैं।
#8. सही निर्णय लेना सीखता है
जो बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो वह कमरे में चारों ओर घूमना शुरू कर देते हैं और इस दौरान वह कमरे को समझने का भी प्रयास करते हैं। जब शिशु कमरे में ही किसी ढलान से गुजरता है तो उनमें सही और अपने आप निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है।
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शुरुआत में हो सकते हैं बच्चे उस ढलान से जल्दी चलने की कोशिश करें और ऐसे में वह गिर सकता है परंतु धीरे-धीरे वे सब सीख जाते हैं और फिर उसी ढलान के आने पर वे धीरे-धीरे चलेंगे क्योंकि अब उन्हें घुटने के बल चलने का अनुभव हो चुका होता है। यह सब अनुभव होने पर शिशु को चलने की सही दिशा के बारे में भी ज्ञान हो जाता है।
#9. शिशु में जानने की जिज्ञासा बढ़ती है
जो बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो उस समय वह अपने सामने कई चीजों को देखते हैं। उनमें से कई चीजें ऐसी होती है जो वे पहली बार देख रहे होते हैं। उनको देखकर उसके मन में उस चीज़ के बारे में देखने और जानने की जिज्ञासा बढ़ती है और यह जिज्ञासा आगे चलकर उनके जीवन में बहुत काम आती है।
#10. शरीर के सभी अंगो का सही इस्तेमाल करना
घुटनों के बल चलते हुए बच्चे अपने शरीर के सभी अंगो का इस्तेमाल करते हैं परंतु शुरुआत में वे ऐसा नहीं कर पाते और धीरे-धीरे यह सब सीख जाते हैं। वे यह समझ जाते हैं कि उन्हें कौन से शरीर के कौन से अंग का कब इस्तेमाल करना है।
इस प्रकार शिशु के घुटने के बल चलने के बहुत सारे लाभ होते हैं। यदि आपके भी छोटे बच्चे हैं या आप मां बनने वाली हैं तो आप भी अपने बच्चों को सही उम्र में घुटने के बल चलना सिखाए। बस आप उन्हें घुटनों के बल चलते समय अकेला ना छोड़े, हमेशा अपनी नजर उन पर बनाए रखें।
बच्चों को जब भी घुटनों के बल चलने के लिए जमीन पर छोड़ें तब उनके आसपास साफ-सफाई रखें और कोई ऐसी चीज जैसे चाकू, कैंची, सुई या फिर कोई और नुकीली चीजें नीचे ना रखें। इससे बच्चे अपने आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिये अपने बच्चे की सुरक्षा का पूरा-पूरा ध्यान रखें।
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